Pashupatinath क्यों कहलाते हैं भगवान शिव? जानिए पौराणिक कथा

Harsh

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Pashupatinath: हिंदू धर्म में भगवान शिव को अनंत नामों से पुकारा जाता है – कोई उन्हें महादेव कहता है, तो कोई नीलकंठ। लेकिन एक नाम जो विशेष रूप से आध्यात्मिक गहराई लिए हुए है, वह है Pashupatinath। यह नाम केवल एक उपाधि नहीं, बल्कि एक दैवीय अवधारणा है, जो भगवान शिव की करुणा, न्याय और मुक्तिदाता रूप को दर्शाती है।

“Pashupatinath” शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है – “पशु” और “पति”। यहां “पशु” का मतलब सिर्फ जानवर नहीं, बल्कि वो हर जीव है जो अज्ञानता, मोह और बंधनों में फंसा हुआ है। “पति” का अर्थ है स्वामी या रक्षक। इस प्रकार Pashupatinath वो हैं जो इन जीवों को आध्यात्मिक अंधकार से मुक्त करते हैं और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर ले जाते हैं।

Pashupatinath
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पौराणिक कथा: जब भगवान शिव ने लिया Pashupatinath का अवतार

प्राचीन समय में जब धरती पर पाप, अधर्म और अराजकता अपने चरम पर थी, तब न केवल मनुष्य बल्कि देवता भी परेशान हो उठे थे। उस समय भगवान शिव ने Pashupatinath रूप में अवतार लिया। इस अवतार में उन्होंने अपने शांत और करुणामय स्वरूप में सृष्टि में फिर से संतुलन स्थापित किया।

उनका यह रूप न्याय और मुक्ति का प्रतीक था। उन्होंने केवल असुरों का नाश ही नहीं किया, बल्कि सभी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय प्रदान किया। यही कारण है कि इस रूप को आज भी अत्यंत पूजनीय माना जाता है।

दिव्य रथ और देवताओं का पशुत्व

एक अन्य कथा के अनुसार, जब असुरों का संहार करने के लिए भगवान शिव का दिव्य रथ तैयार किया गया, तो उसे चलाने वाले घोड़े भी उनके तेज से कांपने लगे। रथ हिलने लगा, पृथ्वी डगमगाई और कोई भी शक्ति भगवान शिव का भार नहीं संभाल सकी।

तब भगवान शिव ने कहा कि यदि सभी देवता और जीव-जंतु थोड़ी-बहुत पशु वृत्ति को स्वीकार कर उन्हें अपना स्वामी मान लें, तो वे उन्हें उनके बंधनों से मुक्त करेंगे। देवताओं ने स्वीकृति दी और तभी से भगवान “Pashupatinath” कहलाए – उन सभी पशुओं के स्वामी, जिन्हें उन्होंने मुक्ति प्रदान की।

काठमांडू के Pashupatinath मंदिर की कथा

नेपाल के काठमांडू में स्थित विश्व प्रसिद्ध Pashupatinath Temple इस नाम की दिव्यता को और भी महान बनाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यहां चार मुखों वाला शिवलिंग स्थापित है, जो ब्रह्मांड की चारों दिशाओं का प्रतीक है।

कहा जाता है कि जब प्राचीन समय में काठमांडू में राक्षसों का आतंक फैला था, तब भगवान शिव ने यहां अवतरित होकर असुरों का संहार किया और निर्दोष प्राणियों की रक्षा की। उसी समय से यह स्थान “Pashupatinath” नाम से विख्यात हो गया।

क्यों की जाती है Pashupatinath रूप की विशेष पूजा?

पशुपतिनाथ रूप की पूजा मुख्य रूप से शांति, मोक्ष, और सांसारिक कष्टों से मुक्ति के लिए की जाती है। यह रूप भक्तों को उनके कर्मों की गहराई समझने और जीवन के प्रति जागरूक होने की प्रेरणा देता है। यह उन्हें मोह, माया और भ्रम से बाहर निकलने की राह दिखाता है।

Pashupatinath
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केवल देवों के नहीं, हर जीव के रक्षक हैं Pashupatinath

भगवान शिव का Pashupatinath रूप दर्शाता है कि वे केवल त्रिलोकों के देव नहीं हैं, बल्कि अज्ञानता में फंसे हर जीव के मार्गदर्शक और रक्षक हैं। यही कारण है कि आज भी लाखों श्रद्धालु उन्हें अपने दुखों का निवारणकर्ता मानकर पूजा करते हैं।

पशुपतिनाथ केवल एक नाम नहीं – वह एक सिद्धांत है, एक शक्ति है जो हर आत्मा को उसके असली स्वरूप की ओर ले जाती है।

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