Govardhan Puja 2023 Date: दिवाली का त्योहार कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है और इसके अगले दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है, उसी दिन अन्नकूट भी होता है। वैसे तो गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2023 Date) का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन ब्रज क्षेत्र में इसका विशेष महत्व है। गोवर्धन पूजा में घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा की जाती है। इस त्यौहार का श्री कृष्ण से भी विशेष संबंध है। आइए जानते हैं साल 2023 में गोवर्धन पूजा की तारीख, पूजा समय और महत्व।
Govardhan Puja 2023 Date
इस साल गोवर्धन पूजा 14 नवंबर 2023, मंगलवार को है। इसी दिन भाई दूज (Bhai Dooj) भी है। गोवर्धन पूजा को प्रकृति की पूजा भी कहा जाता है जिसकी शुरुआत स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने की थी। इस दिन प्रकृति के आधार पर्वत के रूप में गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा है। इसके अलावा शुभ मुहूर्त में गायों की भी पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा 2023 मुहूर्त
पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रपिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट पर होगी और अगले दिन 14 नवंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट पर इसका समापन होगा।
- गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – सुबह 06:43 – सुबह 08:52 (14 नवंबर 2023)
- अवधि – 2 घंटे 09 मिनट
गोवर्धन पूजा महत्व | Govardhan Puja 2023 Date
गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2023 Date) में गायों की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में गाय को देवी लक्ष्मी का रूप भी कहा जाता है। इसे 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि जो लोग गोवर्धन पूजा के दिन गाय की पूजा करते हैं, उन्हें देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। जिस प्रकार माता लक्ष्मी सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए इस दिन का विशेष महत्व है।
क्यों होती है गोवर्धन पर्वत की पूजा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार बृज में अत्यधिक (Bhai Dooj) वर्षा के कारण पूरा गांव डूबने की कगार पर था। तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। पर्वत के नीचे के सभी बृजवासी, पशु-पक्षी अपनी जान बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत की शरण में आये थे। गोवर्धन पर्वत और श्री कृष्ण की कृपा से गांव वाले बड़े संकट से बच गए, इसीलिए इस दिन से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई।
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