Phule Movie Review: ज्योतिबा फुले के जीवन की सच्ची घटनाओं पर बनी है ये फिल्म

Harsh

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Phule Movie Review: भारत के सामाजिक सुधारकों में ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का नाम अत्यंत सम्मान से लिया जाता है। उनकी प्रेरणादायक जीवन गाथा पर आधारित Phule Movie ने अब बड़े पर्दे पर दस्तक दे दी है। यह फिल्म न सिर्फ सामाजिक समानता के संघर्ष की सच्ची कहानी है, बल्कि शिक्षा और स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले असली नायकों को भी सामने लाती है। आइए जानते हैं इस फिल्म में क्या है खास और क्यों इसे हर भारतीय को देखना चाहिए।

Phule Movie: एक सच्ची और प्रेरणादायक कहानी

Phule Movie सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं बनाई गई है। यह फिल्म गानों, नाच-गाने या भारी एक्शन से सजी नहीं है, बल्कि सच्ची घटनाओं और वास्तविक संघर्षों को कैमरे के जरिए दर्शाती है। निर्देशक अनंत नारायण महादेवन ने बड़ी संवेदनशीलता से उन दौरों की तस्वीर पेश की है जब दलितों और महिलाओं को शिक्षा और बराबरी का हक पाने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा था।

Phule Movie
Phule Movie

यह फिल्म कल्पना पर नहीं, बल्कि वास्तविक ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, जो इसे और भी खास बनाती है।

ज्योतिबा फुले: महात्मा की उपाधि पाने वाले पहले भारतीय

Phule Movie के जरिए दर्शकों को यह जानने का मौका मिलता है कि महात्मा गांधी से पहले ज्योतिबा फुले को ‘महात्मा’ की उपाधि दी गई थी। फिल्म में बताया गया है कि किस तरह एक साधारण किसान परिवार में जन्मे ज्योतिबा ने समाज के सबसे कमजोर वर्ग के लिए लड़ाई लड़ी और शिक्षा को बदलाव का सबसे बड़ा हथियार बनाया।

गेंदा फूल का प्रतीक इस फिल्म में एक अहम भूमिका निभाता है, जो समाज की विडंबनाओं को गहराई से दर्शाता है।

स्त्री शिक्षा की मजबूत नींव की कहानी

Phule Movie में सावित्रीबाई फुले के संघर्ष और योगदान को भी बेहद खूबसूरती से दिखाया गया है। उन्होंने बेटियों के लिए स्कूल खोले और अपने सहयोगी फातिमा के साथ मिलकर स्त्री शिक्षा की अलख जगाई।

फिल्म दिखाती है कि किस तरह सामाजिक बहिष्कार, हिंसा और विरोध के बावजूद फुले दंपती ने हार नहीं मानी और समाज में समानता की नई इबारत लिखी। सावित्रीबाई के प्रयासों ने दलित साहित्य और महिला अधिकारों की नींव रखी, जो आज भी भारतीय समाज को दिशा दे रही है।

जातीय एकता और सामाजिक समरसता का संदेश

Phule Movie केवल दलितों की बात नहीं करती, बल्कि यह दिखाती है कि कैसे जातीय भेदभाव को तोड़कर समाज में समरसता लाई जा सकती है। ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सामाजिक एकता की मिसाल पेश की थी।

फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह अगड़ी जातियों के कुछ प्रगतिशील लोग भी फुले के आंदोलन में शामिल हुए और सामाजिक सुधार की इस लड़ाई को मजबूत किया।

Phule Movie में दमदार अभिनय और बेहतरीन निर्देशन

फिल्म में प्रतीक गांधी और पत्रलेखा ने अपने किरदारों में जान डाल दी है। प्रतीक गांधी ने बुजुर्ग ज्योतिबा फुले के किरदार को बड़ी खूबसूरती से जिया है। वहीं पत्रलेखा ने सावित्रीबाई के किरदार में ईमानदारी से अपना योगदान दिया है, हालांकि शुरुआत में उनकी हिंदी उच्चारण में थोड़ी कमी महसूस होती है।

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, संगीत और संपादन भी कहानी को मजबूत बनाते हैं। मोनाली ठाकुर का गाया गीत ‘साथी’ फिल्म की भावनाओं को और भी गहरा बना देता है।

Phule Movie एक जरूरी और प्रेरक फिल्म

Phule Movie कोई साधारण फिल्म नहीं है, यह एक ऐसी कहानी है जिसे हर भारतीय को देखना चाहिए। यह फिल्म बताती है कि असली आजादी केवल राजनैतिक नहीं, बल्कि सामाजिक बराबरी से आती है।

Phule Movie
Phule Movie

अगर भारत को सही मायनों में आगे बढ़ाना है, तो हमें अपने अतीत की इन सच्ची और साहसी कहानियों को जानना और समझना जरूरी है। ‘फुले’ जैसी फिल्में समाज को आईना दिखाती हैं और सही दिशा में सोचने को प्रेरित करती हैं।

हर स्कूल और कॉलेज में इस फिल्म को दिखाया जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी भी जान सके कि आज जो अधिकार हमें मिल रहे हैं, उसके पीछे कितने संघर्षों और बलिदानों की कहानियां छुपी हैं।

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